इजरायल: शीत युद्ध के दौरान, जासूसी की दुनिया में एक ऐसा ऑपरेशन हुआ जिसने इतिहास बदल दिया। इसे जाना जाता है ऑपरेशन डायमंड के नाम से। यह ऑपरेशन इजरायल की खुफिया एजेंसी मोसाद द्वारा चलाया गया था, जिसका लक्ष्य उस समय के सबसे उन्नत सोवियत लड़ाकू विमान मिग-21 को हासिल करना था।
ऑपरेशन की योजना:
1960 के दशक में, मिस्र, सीरिया और इराक जैसे देश सोवियत संघ के सहयोगी थे और उनके पास मिग-21 विमान थे। ये विमान इजरायल के लिए एक बड़ा खतरा थे।
ऑपरेशन डायमंड 1963 के मध्य में शुरू हुआ और इसे पूरा होने में लगभग छह साल लग गए। इस ऑपरेशन में मोसाद के एजेंटों ने इराक में तैनात एक असंतुष्ट इराकी वायु सेना के पायलट मुनीर रेड्फा से संपर्क किया।

इसके बाद ईराक को मिले मिग-21 फाइटर जेट को चुराने का प्लान बनाया गया। इस बार मोसाद की एक लेडी जासूस ने मुनीर रेड्फा नाम के ईराकी पायलट को अपनी बातों में फंसा लिया। मुनीर रेड्फा ईसाई धर्म का था और ईराक में उसे प्रमोशन नहीं मिल रहा था। इसी कारण वो काफी परेशान भी था, जिसका फायदा मोसाद ने उठाया।
ऑपरेशन का क्रियान्वयन:
16 अगस्त, 1966 को, रेड्फा अपने मिग-21 विमान को उड़ाकर इजरायल भाग गया। यह एक साहसी ऑपरेशन था, जिसमें रेड्फा को इराकी वायु रक्षा प्रणाली को चकमा देना पड़ा और साथ ही ईंधन की कमी से भी जूझना पड़ा।
ऑपरेशन का परिणाम:
रेड्फा के इजरायल पहुंचने के बाद, मिग-21 का गहन अध्ययन किया गया। इजरायली वैज्ञानिकों और इंजीनियरों ने विमान की तकनीक और क्षमताओं को समझने के लिए इसका हर पहलू का विश्लेषण किया। इस जानकारी केのおかげで, इजरायल अपने लड़ाकू विमानों को मजबूत करने और भविष्य के संघर्षों में बेहतर तरीके से तैयार होने में सक्षम था।
ऑपरेशन डायमंड का महत्व:
ऑपरेशन डायमंड एक महत्वपूर्ण खुफिया सफलता थी जिसने इजरायल की हवाई रक्षा क्षमता को मजबूत किया। इस ऑपरेशन ने यह भी साबित कर दिया कि गुप्त तरीके और साहसी कदम महत्वपूर्ण खुफिया जानकारी हासिल करने में मददगार हो सकते हैं।